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July 31, 2011

कितना सच कितना झूठ पता नहीं

आज अखबार में पढ़ा हैं जो लोग सोशल नेट्वोर्किंग साइट्स पर ज्यादा सक्रियाए हैं उनमे पर्सनैलिटी डिस आर्डर की संभावनाए दिख रही हैं ।
वो बार बार अपनी पोस्ट की गयी बातो पर जा कर देखते हैं की लोगो ने क्या जवाब दिया , जवाब ना मिलने की दशा में ऐसी व्यक्ति के अन्दर क्रोध का बढ़ना देखा गया हैं । इस के अलावा उनके कितने मित्र हैं और दूसरे के कितने मित्र ये जानकारी उस व्यक्ति को डिप्रेशन की और ले जाती देखी गयी हैं

सोशल नेट्वोर्किंग से लोगो ने अपने सम्बन्धियों और रीयल दुनिया के मित्रो से अपने दूर कर लिया हैं ऐसा भी पाया गया हैं ।

कितना सच कितना झूठ पता नहीं

6 comments:

  1. पता नहीं, हम तो सबसे दूर हैं, पर संभव है।

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  2. प्रायः,लोग ऐसा कहते ही सुने जाते हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट के कारण उन्हें बचपन के वे दोस्त मिले जिनसे मिल पाना अन्यथा शायद ही संभव होता। मगर यह एक सच्चाई है कि ब्लॉगिंग की ही तरह,सोशल नेटवर्किंग साइट एक नशा है जो पर्सनैलिटी पर किसी न किसी रूप में असर डालता ही है।

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  3. यह पूरा सच नहीं मगर पूरा झूठ भी नहीं

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  4. आभासी दुनिया में एक हजार मित्रों वाले विद्वान् भी अक्सर अकेलेपन की शिकायत कर दिया करते हैं , तो ये तो सच ही हुआ ना !

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  5. जो लोग प्राथमिकताएं या कहें जरूरी और गैर जरूरी का फर्क नहीं समझते उनके मामले में सच ही होगा इसमें कोई दोराय नहीं

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