मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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May 17, 2011

परिकल्पना पर मेरा कमेन्ट

मेरा कमेन्ट यहाँ


आप को ही नहीं किसी को भी अधिकार हैं पुरूस्कार को प्रायोजित कर के दिलवाने का . ये सब "व्यक्तिगत " होता हैं लेकिन शुरुवात "एक व्यक्ति " ही करता हैं .

मुझे केवल एक आपत्ति हैं और वो में आप के ब्लॉग पर आयी शुरू की पोस्ट से कर चुकी हूँ की आप को " पूरी हिंदी ब्लॉग्गिंग " को हिजैक करने का अधिकार नहीं हैं . आप अपनी पसंद के ब्लोगर / ब्लॉग पोस्ट को पुरूस्कार देने के अधिकारी हैं लेकिन आप को ये कहना चाहिये की ये आप के पसंद के ब्लोग्गर हैं और परिकल्पना समूह के ब्लोग्गर हैं .

ये परिकल्पना समूह का पुरूस्कार समारोह था ना की हिंदी ब्लोगिंग का पुरूस्कार समारोह . जिनको पुरूस्कार मिला आप की नज़र में वो शेष्ठ हो सकते हैं पर वो सब "हिंदी ब्लॉग्गिंग के चेहरे " नहीं हो सकते हैं ,

और अगर आप सच में "हिंदी ब्लोगिंग " के लिये पुरूस्कार दे रहे होते तो "परिकल्पना समूह " के लोगो को नहीं यानी उन लोगो को नहीं जिन्होने अपनी पोस्ट भेजी पुरूस्कार देते अपितु जितने भी हिंदी ब्लॉग हैं उनमे आधार बनाकर अपनी पसंद से नामांकन करते

रवीन्द्र प्रभात जी आप ने जो तरीका अपनाया हैं पुरूस्कार देने का वो "प्रिंट मीडिया " मै प्रचलित हैं जहां अपनी किताब सबमिट करनी होती हैं पुरूस्कार समिति को और जितने पुस्तके आती हैं उन मै से ही चुनाव होता हैं , लेकिन ब्लॉग प्रिंट मीडिया से अलग हैं . यहाँ का तरीका भी अलग होना चाहिये .

पुरूस्कार का आधार आप की पसंद हो सकता हैं पर आप की पसंद के जो नहीं हैं और जो परिकल्पना से नहीं जुड़े हैं वो जिनको पुरस्कार मिला हैं उनसे कमतर है या ये पुरूस्कार "हिंदी ब्लोगिंग का इतिहास " हैं कहना गलत हैं . ये पूरे मीडियम को हाइजैक करने जैसा हैं

बहुत से लोगो ने आपत्तियां दर्ज की हैं पर वो यहाँ कमेन्ट बॉक्स मे नहीं दिखे हैं कोई बात नहीं मे तो स्पष्टवादी हूँ २००६-७ से ब्लॉग माध्यम से जुड़ कर हिंदी मे अपनी बात कह रही हूँ अगर नेटवर्क से जुड़ कर पुरस्कार लेना होता तो कभी का नेटवर्क से जुड़ गयी होती लेकिन नेटवर्क से जुडने का अर्थ होता हैं वो कहना या करना जो पुरूस्कार दे रहा हैं चाहता हो

किताबो मे भी अगर जितने ज्यादा से ज्यादा ब्लॉग का नाम आता उतना अच्छा होता लेकिन आप ने तो वो भी प्रायोजित किया यानी जो हिंदी ब्लोग्गर कहलाना चाहते हैं वो अपना नाम प्रेषित कर दे प्रति के दाम के साथ
यहाँ आप ने प्रिंट मीडिया से उल्टा किया , प्रिंट मीडिया मे किताब छपती हैं तो ज्यादा से ज्यादा और किताबो का नाम होता हैं जहां से भी सन्दर्भ लिया गया हो .

अंत मे यही कहूँगी आप को पूरा क़ानूनी और संवैधानिक अधिकार हैं कुछ भी करने का और उतना ही अधिकार उन सब को भी जिन्हे इस प्रकार के पुरूस्कार गलत लगते हैं क्युकी बात पुरूस्कार की नहीं हैं बात मीडियम के हाइजैक होने की हैं

जो लोग ये कह रहे हैं उन से बेहतर और कोई नहीं था इसलिये उनको मिला या जो लोग कह रहे हैं नहीं मिला इस लिये ये प्रतिक्रया हैं वो सब अपनी जगह ठीक हैं क्युकी जितनो को मिला हैं उनसब को अगर ये उपलब्धि लगती हैं तो हो सकता हैं उनके लिये उपलब्धि की सीमा पुरूस्कार मिलने तक सिमित होती होगी

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