मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

October 29, 2010

ब्लोगिंग का टाइम कैप्सूल बनाना छोड़ दे

हिंदी ब्लॉग जगत के ज्यादातर ब्लॉगर के पास रीयल लाइफ के रिश्तो कि कमी हैं शायद इस लिये वो यहाँ रिश्ते खोजने चले आते हैं । जबकि ये आभासी दुनिया हैं और यहाँ केवल विचारों का आदान प्रदान होना चाहिये ना कि रिश्ते खोजने चाहिये । हमे मुद्दे के साथ खड़े होना चाहिये ना कि ब्लॉगर के साथ । यहाँ सबसे ज्यादा कमेन्ट उसको मिलते हैं जो तुरंत दूसरे को माँ समान , भाई समान , पिता समान और ना जाने किस किस समान कहते हैं । ब्लोगिंग सोशल नेट्वोर्किंग नहीं हैं पर हिंदी ब्लोगिंग हैं ।

इसके अलावा टिपण्णी पाने कि इच्छा और अपने लिखे पर तारीफ़ पाने कि इच्छा सबको आभासी रिश्तो बनाने केलिये प्रेरित करती हैं

लोग कहते हैं ये पुराने ब्लॉगर , ये वरिष्ठ ब्लॉगर ये अति विद्वान् ब्लॉगर , ये सम्मानित ब्लॉगर इत्यादि । जब भी आप किसी को तेग देते हैं तो आप उसको एक मंच पर खडा कर देते हैं और फिर अगर वो आप को जवाब नहीं देता तो उसके नीचे का मंच खीचना चाहते हैं और खीच भी लेते हैं सो किसी को भी महिमा मंडित करना ही अपने आप मे आप कि कमजोरी हैं । सबको सम्मान क्यूँ ना समझा जाये इस आभासी दुनिया ।

क्या ज़रूरी हैं कि आप किसी कि उम्र , लिंग और उसके व्यक्तिगत चीजों से परचित हो । आप को लेख अच्छा लगा आप कमेन्ट कर दे , नहीं लगा तो भी कह दे । मुद्दा हो कोई तो मुद्दे कि बात करे नहीं हैं तो आगे चले जाए ।

आभासी दुनिया मे रिश्ते बनाना ही अपने आप मे सही नहीं हैं । रिश्ते मजबूत करिये अपने घर मे अपने आस पास मे ये दुनिया शब्दों कि हैं , मुद्दों कि हैं , विचारों कि हैं यहाँ क्यूँ माँ , पिता भाई बहना खोजना । क्यूँ अपने को एक छवि मे बंधना ।

ईश्वर ने जिन रिश्तो को आपकी जिंदगी मे दिया हैं पहले उनको पूरा कीजिये क्यूँ अपनी रीयल जिंदगी कि कमियों हो यहाँ पूरा कीजिये

टिपण्णी के लिये नहीं अपनी ख़ुशी के लिये लिखे । जो मुद्दे आप को व्यथित करते हैं उनपर लिखे । हर दिन एक दूसरे के ऊपर लिखकर आप कोई इतहास नहीं दर्ज करा सकते ब्लोगिंग का । ब्लोगिंग का टाइम कैप्सूल बनाना छोड़ दे

October 26, 2010

एक कमेन्ट "जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई"

आप हमेशा एक बात कहती हैं कि "कोई कितना भी कहे कि 'नारीगत' समस्या हर नारी समझ सकती है, तो वो बिलकुल ग़लत है।" औरआप गलत हैं क्युकी अगर आपके हिसाब से चला जाये तो
माता पिता बच्चो कि समस्या नहीं समझ सकते और बच्चे माता पिता कि
पति पत्नी कि समस्या नहीं समझ सकता , पत्नी पति कि
अमीर गरीब कि समस्या नहीं समझ सकता , गरीब अमीर कि



हम सब एक समाज का हिसा हैंअपनी अपनी पीड़ा हम भोगते हैं और दुसरो कि पीड़ा को समझते हैंभोगने और समझने के अंतर को केवलमनुष्य ही नहीं जानवर भी समझते हैंनारी कि पीड़ा , यानी प्रसव इसको एक माँ भोगती हैं लेकिन उस माँ से जुदा हर व्यक्ति इस को समझता हैंडिलीवरी कराने वाली डॉक्टर कई बार अविवाहित भी होती हैंक्या आप का मानना हैं कि हर गाइनोकोल्गिस्त को विवाहिता होना चाहिये ताकिवो प्रसव कि पीड़ा को समझ सके या किसी भी पुरुष को डिलीवरी कराने का अधिकार ही नहीं होना चाहिये

मिशनरी मे बहुत से तरह के लोग होते हैं और वो सब इंसान हैंवो अपनी मर्जी से वहाँ नहीं होतेमे जिस स्कूल मे पढ़ती थी वहाँ कई "brother नौकरी के कार्यकाल के बाद brother hood छोड़ देते थेजैसा कि आपने कहा हैं क्युकी आप उनकी जगह नहीं हैं आप उनकी पीड़ा और त्रासदीको नहीं समझ सकती





October 25, 2010

एक भरी भरकम समझाइश पोस्ट हैं ये । वही पढे जिनका दिल मजबूत हो ।

एक भरी भरकम समझाइश पोस्ट हैं ये । वही पढे जिनका दिल मजबूत हो ।वैसे मजबूत जिगर भी झेलने कि क्षमता रखता हैंक्षमता से याद आया ब्लॉग लिखने कि क्षमता हो तो आभासी परिवार तुरंत बनजाता हैंपरिवार कि बात करे तो जिनका आभासी परिवार उनका ही बनता हैं जिनका पी आर तगड़ा होता हैंपी आर तगड़ा तभी हो सकता हैं जब आप का मोबाइल नंबर ब्लॉग पर उपलब्ध होब्लॉग से याद आया एक ब्लोगपर पढ़ा था कमेन्ट मे कि ज़रा फ़ोन करोकमेन्ट उन्ही को ज्यादा मिलते हैं जो निरंतर लिखते हैंनिरंतर यानी जिन्हे नीर और क्षीर का अंतर पता होक्षीर से खीर याद आयीखीर साबूदाने कि उतनी अच्छी नहीं होती जितनी चावल किपुराना चावल बहुत महकता हैं और ब्लॉग पर पुराने ब्लॉगर हमेशा चिर युवा होते हैंब्लॉगर से याद आया कुछ ब्लॉगर सबको छोटा मानते हैं अपने से तो कुछ सबको बड़ा मानते हैं अपने से ।और कुछ ये भी मानते हैं कि एक उम्र के बाद महिला युवा नहीं होती । उम्र से याद आया कि एक ५४ साल के ब्लॉगर एक ५५ साल कि ब्लॉगर को माँ कहते हैं । तर्क हर औरत मे एक माँ छुपी हैं । कुतर्क हर पुरुष मे एक पिता क्यूँ नहीं होता । चिर यौवन का अधिकार पुरुष का ही होता हैं । ना ना मे नहीं कह रही एक ब्लॉग पर पढ़ा । चलते चलते ये भी पढ़ा कि अपना चित्र जो दुसरो के ब्लॉग से हटवा चुके थे वो दुसरो का चित्र अपने ब्लॉग से नहीं हटाने वाले .पहले जिस ने चित्र डाला उस पर मुकदमा करने वाले थे अब जो हटवा रहा हैं उस पर करने वाले हैं ।

October 21, 2010

आस्था - पाखण्ड

मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार ---- आस्था
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड

ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड

आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड

पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड

पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड

साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड

व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड






सूची और विस्तार मांगती हैं कम शब्दों मे ज्यादा परिभाषित करे

October 20, 2010

मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं ।

आस्था और पाखण्ड मे अंतर समझना जरुरी हैं । आस्था हमारी शक्ति हैं और पाखण्ड हमारी कमजोरी । आत्मा , ईश्वर हैं या नहीं इस से क्या फरक पड़ेगा ?? फरक इससे पड़ेगा कि आप आत्मा और ईश्वर को आस्था मानते हैं या पाखण्ड ।

ब्लॉग पर पिछले कुछ दिनों से soul / आत्मा को ले कर कई पोस्ट आई हैं और हर पोस्ट पर अपने तर्क हैं पोस्ट मे भी और कमेन्ट मे भी क्युकी "शिक्षा" ने मजबूर किया हैं कुछ को अपनी "आस्था" को डिस्कस करने के लिए और कुछ को उनकी " शिक्षा " ने मजबूर किये हैं लोगो के " पाखण्ड " को डिस्कस करने के लिये ।

यानी शिक्षा वो लकीर हैं जो आस्था को पाखण्ड से अलग करती हैं ।
"राम" हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं इस लिये "राम" शब्द से शक्ति मिलती हैं और नश्वर शरीर को लेजाते समय " राम नाम सत्य का उच्चारण " होता हैं ।
वही अगर हर पुरुष "राम" बन कर "सीता " का त्याग करे तो वो हिन्दू धर्म का पाखण्ड हैं आस्था नहीं ।

"वर्जिन मेरी " एक आस्था हैं क्युकी ईसा मसी की माँ का कांसेप्ट उनसे जुडा हैं । लेकिन क्या एक वर्जिन माँ बन सकती हैं ?? हां आज के परिवेश मे ये संभव हैं क्युकी आज बिना पुरुष के सहवास के भी माँ बनना संभव हैं अब अगर कोई भी साइंटिस्ट इस बात को नकार सकता हैं तो कहे । हो सकता हैं उस समय भी वो साइंस का ही चमत्कार हो लेकिन उसको आस्था से जोड़ दिया गया । पर अगर हर वर्जिन ये सोचे की वो " ईसा मसी " पैदा कर रही हैं / सकती हैं तो पाखण्ड का बोल बाला होगा ।


बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी फैथ / आस्था रखता हैं । कभी भी जब नासा का लौंच होता हैं तो आप को सीधे प्रसारण मे लोग किसी दैविक शक्ति को याद करते दिखते हैं । साइंस अपने आप मे एक फैथ हैं की हम को विश्वास हैं की हम ये खोज कर रहेगे । हर वैज्ञानिक QED कह कर अपने विश्वास को पूर्ण करता हैं ।

एक किताब मे पढ़ा था की आत्मा दो हिस्सों मे होती हैं और जिस दिन दोनों हिस्से मिल जाते हैं उस दिन आप को आप का सोलमेट मिल जाता हैं । सोलमेट यानी आप की अपनी छाया । उसी किताब मे लिखा हैं की दो लोग जब विवाह मे बंधते हैं तो वो दो लोग बंधते हैं जिन्होने पिछले जनम मे एक दूसरे का बहुत नुक्सान किया था और उनमे आपस मे बहुत नफरत थी । इस जनम मे विवाह मे बांध कर वो उस नफरत को ख़तम करते हैं ।

दूसरी किताब मे पढ़ा था की आत्मा अपने लिए खुद शरीर का चुनाव करती हैं । वो ऐसी कोख चुनती हैं जहां वो सुरक्षित रहे यानी आपके बच्चे आप को चुनते हैं {वैसे ज्यादा देखा गया हैं बच्चे कहते हैं हमे क्यूँ पैदा किया }

नारी आधारित विषयों पर अच्छे अच्छे वैज्ञानिक जब हिंदी मे ब्लॉग पर लिखते हैं तो यही कहते हैं नारी को बनाया ही प्रजनन के लिये हैं मुझे इस से बड़ा पाखंड कुछ नहीं लगता ।

वही जब हिन्दुत्वादी होने की बात होती हैं तो एक दो ब्लॉगर का नाम लिया जाता हैं जबकि शायद ही कोई ऐसा ब्लॉगर होगा जो अगर हिन्दू हो कर अपनी पुत्र आया पुत्री के विवाह के लिये मुस्लिम वर आया वधु खोजे । या ये कह कर जाए की मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं ।

वैसे आप कुछ भी कह कर जाए मरने के बाद आप के शरीर का क्या होगा ये जिनके हाथ वो पड़ेगा वही उसकी गति करेगे ।

चलते चलते
मेरी माता जी की इच्छा हैं की वो अपना मृत शरीर अस्पताल को दान करदे । इसके लिये क्या करना होगा , किसी के पास कोई जानकारी हो उपलब्ध करा दे आभार होगा उनको बता सकुंगी ।

October 14, 2010

वर्धा मे ब्लॉग प्रयोगशाला सम्बंधित एक प्रश्न

वर्धा मे ब्लॉग प्रयोगशाला और सेमिनार का आयोजन संपन्न होगया हैं
बहुत से रिपोर्ट पढ़ ली हैं
एक जानकारी चाहिये
क्या वहाँ हमारा राष्ट्रीय गान / नॅशनल एंथम कार्यक्रम शुरू या संपन्न होने पर गाया गया था किसी भी सत्र मे

October 08, 2010

हर कुत्ते बिल्ली को आप आदरणीय की कैटेगरी में खड़ा कर देते हैं.

महफूज़ अली said...

हर कुत्ते बिल्ली को आप आदरणीय की कैटेगरी में खड़ा कर देते हैं...

सतीश जी ने अपने ब्लॉग पर आचार सहिता बता दी ये देखिये लिंक
वो कहते हैं "अपमान करने के उद्देश्य से कहे कमेन्ट यहाँ नहीं छापे जायेंगे ! कुछ लोगों का यह मानना है कि विरोध की आवाज सहन करने की हिम्मत नहीं है वे इसे शौक से मेरी कायरता मान लें इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है !"

ऊपर एक कमेन्ट का अंश मात्र हैं जो मोडरेशन के बाद भी दिख रहा हैं । एक और भी कमेन्ट था इन्ही का महिला ब्लॉगर के ऊपर वो भी छपा गया था लेकिन मेरी आपति के बाद हटा ।
इस मोडरेशन का क्या फायदा । ये तो सेलेक्टिवे नीति हैं अपशब्द सुनवाने कि जो पहले से ही यहाँ हैं ।
नेवर माइंड क्युकी लिंक दे कर बात कहने मे उनको आपत्ति नहीं हैं सो ये पोस्ट

October 07, 2010

CWG कोमन वेअल्थ गेम्स के सेलिब्रेशन कोमन मैन के लिये नहीं हैं

कल दिल्ली मे कोमन वेअल्थ गेम्स हैं और पूरी दिल्ली कोमन मैन की आवाजाही के लिये बंद हैं । दूकान बंद , सड़क बंद , मेट्रो बंद ।

अगर कॉमन आदमी सेलिब्रेट करना चाहे तो क्या करे ? देश मे महा उत्सव का माहोल हैं , दिल्ली की रौनक के चर्चे हैं पर आम आदमी इन सब से दूर कर दिया गया हैं

काश सब खुला होता लोग अपना तिरंगा लिये सडको पर टहलते दिखते । जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम के बाहर कतारों मे खड़े आने वाले खिलाड़ियों का स्वागत करते । कनोट प्लेस मे रात को घुमते फवारो को निहारते ।

जब दिल्ली एक स्टेट नहीं थी ना जाने कितनी बार रात को दस बजे इंडिया गेट जाते थे { १९६८-१९७३ } पापा ममी के साथ फियट मे बैठ कर , १ रूपए लीटर था पट्रोल , और इंडिया गेट घूम कर आइसक्रीम खा कर राजसी ठाट थे रात मे दिल्ली बड़ी खुबसूरत थी तब भी

या फिर प्रेस रोड पर बड़े मामाजी के यहाँ २६ जनवरी की परेड देखने के लिये उनके नौकर सबरे ४ बजे से जा कर आगे की जगह रोकते और फिर ममी पूड़ी आलू बनाती और हम लोग वहाँ बैठ कर कहते । ११ बजे के आस पास परेड वहाँ से निकलती थी । फिर बीटिंग था रिट्रीट देख कर ही मॉडल टाउन वापस आते थे

या रामलीला देखने कोटला मैदान जाते जहाँ सोंग और डांस की राम लीला तीन घंटे मे पूरी दिखाई जाती १ रूपए का टिकेट होता था
या प्रगति मैदान मे फेयर देखने जाते और २ रूपए का टिकेट होता अपना और पापा की फियट का भी २ रूपए ही लगता लेकिन गाडी अन्दर पार्क होती जहां आज अड़मिनिसत्रेतिवे ब्लाक हैं

और सबसे ज्यादा मजा आता था जब रात को लाल किला देखने पैदल जाते थे प्रेस रोड से

वो सब एक सेलिब्रेशन लगता था । आज चाह कर भी अपनी भांजी को कहीं नहीं ले जा सकते क्युकी आम आदमी के लिये कुछ नहीं हैं और आम आदमी के छोटे छोटे सुख से ये पीढ़ी वंचित हैं

बहुत से ब्लॉग पर पढ़ रही थी दिल्ली मे सब कितना सुन्दर हो गया हैं और वो सब जो इसको नहीं देख पा रहे वो नकारात्मक हैं लेकिन पता नहीं क्यों जब हम दिल्ली मे रह कर आम आदमी की तरह कुछ नहीं एन्जॉय कर पा रहे तो जो दिल्ली से बाहर हैं वो इस प्रगति को क्या एन्जॉय करेगे

अभी अभी पता चला की पी टी उषा को अधिकारिक निमंत्रण नहीं दिया गया हैं ये गेम्स किसके लिये हो रहे हैं ???

प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड का फैसला दूरगामी लगता हैं

आज सोच रही थी कि इस पर कुछ लिखूं आप का लेख पढ़ा
विचार शून्य जी लीजिये कमेन्ट

जितनी जानकारी कानून कि हैं उसके अनुसार आज कल आजीवन कारावास का अर्थ हैं जब तक मृत्यु ना हो पहले ये १४ साल कि होती थी
हमारे देश मे इस समय कोई भी जल्लाद मौजूद नहीं हैं सो फांसी कि सजा बेमानी होती हैं
मुझे ये फैसला देने वाले नयाधीश पर इन्ही दो बातो कि वजेह से गुस्सा नहीं आया क्युकी ये फैसला बहुत दूरगामी हैं

हाँ कभी कभी सोचती हूँ रेप और मर्डर करने वालो से लोग शादी कैसे करलेते हैं और ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के बारे मे क्या कभी सोचते हैं उन्हे संसार मे लाने से पहले ??

लिंक दे सके तो आभार होगा

हिंदुस्तान टाइम्स
नवभारत टाइम्स
टाइम्स ऑफ़ इंडिया

इन पर ब्लॉग बनाना हो तो कैसे बनाया जाता हैं
जो जानकारी हो बताये
लिंक दे सके तो आभार होगा

October 03, 2010

मेरी सोच स्वतंत्र हैं

"नारी हूँ नारीवादी नहीं "


"नारी हूँ नारीवादी नहीं "

This is a mere obnoxious comment on those woman who try to bring an era of equality in man- woman
Woman who are born with slave mentality always try to justify the slavery that they have been going thru for ages

Being a woman means to enjoy ones woman hood which is far more than just
marriage
being mother
being daughter
cleaning nappies
breast feeding
hormonal problems
menopausal problems
making tea lunch for the entire household
because YOU ARE MEANT TO DO
this in itself is reservation { certain tasks that are reserved for woman }
If you are against reservation Ms Divya then please dont ask woman to do reserved tasks so that they become A GLORY A DEITY in the eyes of society
We need more human beings here as we have ample of deities and dharma . pujan etc in india
Enjoyment of woman hood means
To do all the above things IF YOU WANT TO DO THEM AND NOT BECAUSE YOU ARE EXPECTED TO DO THAT
and
to do all the other things that you feel will bring happiness and fulfillment in your own self

A TRUE FEMINIST is one who knows that
she has equal rights given by nature , law and constitution to do what ever she wants to do
and which means the RIGHT TO CHOOSE HER OWN WAY OF LIVING which is not governed by the whims and fancies of someone else

No woman copies man because matriarchal society existed before patriarchal society
No man is cruel if he is doing what he has been trained to do The society is cruel

Writing all that woman needs to do and then saying say No to reservation means what ????

Writing that marriage and motherhood makes woman a woman and then saying refuse maariage because of dowry will make woman a FEMINIST AND NOT NAARI

BE A WOMAN AND ENJOY BEING A WOMAN

अपने अस्तित्व और महिमा को समझने के लिए है।
set example by your own deeds
do sacrifice yourself rather than asking others to do it
be a leader then a follower
BE A FREE THINKER DONT LET YOUR THOUGH PROCESS BE POLLUTED BY WHAT OTHERS HAVE DONE BEFORE YOU

मेरी सोच स्वतंत्र है ।


No the post is crystal clear
Two third has been written to please the society
One third is written to appease the conscience

October 02, 2010

एक कमेन्ट

some question asked in here and the conclusion dont match

if you say that the ultimate existence of woman is in being mother then you are undervaluing people like lata mangeshkar , mother Teresa

if you say that woman should remain a mute and silent spectator then you are contradicting every thing that you wrote on this blog

is you say that woman should not copy man think again because woman dont copy man they merely are trying to be on their own

i am surprised with this post because

you say ultimate woman hood is in being a mother and you add that dont marry someone who takes dowry
perhaps you dont know that in india marriages dont happen without dowry and lets not debate on that because if even one rupee is spent which you have not earned yourself then its a dowry in some form or other

but then you have already said that if a woman earns she is coping a man

looks like you have mixed some where in the thought sharing process because every line is contradictory and against man -woman equality

I SOMETIMES WONDER WHEN WILL PEOPLE START THINKING THAT MAN - WOMAN EQUALITY IS NOT SAME AS WOMAN BECOMING MAN

this post is just trying to pot ray the author as woman wanting to earn respect by speaking what people like to hear

सर्वर प्रॉब्लम हैं !!!!

जब से ब्लॉग वाणी बंद हुई हैं कमेन्ट मे आये हर कमेन्ट का जवाब देना लाजिमी हो गया हैं । कहीं कोई आभार व्यक्त करता , कहीं कोई बहस करता हैं और तो और कहीं कोई अनाम बन कर अपने ही ब्लॉग पर २० कमेन्ट डालता हैं ।
इसके अलावा किसी किसी ब्लॉग पर तो दस कमेन्ट होते हैं एक ही ब्लॉगर के और कहा जाता हैं सर्वर की समस्या थी । चिट्ठाजगत मे जो ब्लॉग ऊपर ६० कमेन्ट दिखाते हैं उसमे कम से कम ५० कमेन्ट तो ब्लॉग पोस्ट करने वाले के ही मिलतेहैं । किसी ब्लॉग पर तो जिन लोगो ने मोद्रशन सक्षम किया होता हैं वो पोस्ट की अपडेट उसके नीचे कम से कम दस कमेन्ट कर के देते हैं ।

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