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July 07, 2009

चुटकियाँ

चुटकियाँ जो काटते हैं
शालीनता का मुलम्मा ओढ़ कर
वो भूल जाते हैं
की पाँच उँगलियों की छाप
हर मुलम्मे को उतार देती हैं
और रह जाता हैं नंगा शरीर
और उससे भी ज्यादा नंगा मन
कपडे बस तन ढकते हैं
कपड़ो मे मन ढकने की ताकत नहीं होती
सभ्यता अगर कपड़ो से आती
तो हर सफेदपोश सभ्य ही होता

8 comments:

  1. सभ्यता अगर कपड़ो से आती
    तो हर सफेदपोश सभ्य ही होता
    बहुत गहरी बात
    बहुत अच्छी रचना

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  2. सही कटाक्ष...........सुन्दर

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  3. कही पे निगाहें कही पे निशना लगाया जा रहा है
    वीनस केसरी

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  4. bahut sundar !

    bahut khoob !

    badhaai !

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  5. यहाँ चुटकी काटने वाले का नाम भी मिल जाता तो क्या बात थी । वैसे बात बहुत ही यथार्थ पूर्ण है ।

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  6. सभ्यता अगर कपड़ो से आती
    तो हर सफेदपोश सभ्य ही होता

    अच्छा है!

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